फांसी देने पर कैदी की मौत कैसे होती है? फांसी की सजा पाए कैदी एवं फांसी से जुडी पूरी जानकारी

Brijesh Yadav
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फांसी देने पर कैदी की मौत कैसे होती है फांसी की सजा पाए कैदी एवं फांसी से जुडी पूरी जानकारी
फांसी देने पर कैदी की मौत कैसे होती है फांसी की सजा पाए कैदी एवं फांसी से जुडी पूरी जानकारी


मौत की सजा पाए कैदी को राहत की आखिरी उम्मीद होती है देश के राष्ट्रपति से। कैदी की तरफ से राष्ट्रपति के पास दया की गुहार लगाई जाती है कि वो फांसी की सजा माफ कर दें। लेकिन जब राष्ट्रपति से दया याचिका खारिज हो जाती है तो कैदी को फांसी लगना तय हो जाता है। राहत के सारे दरवाजे बंद होते ही संबंधित अदालत, जेल प्रशासन की मांग पर कैदी का ब्लैक वॉरंट या डेथ वॉरंट जारी कर देती है। इस डेथ वॉरंट में फांसी की तारीख, समय और जगह लिखी होती है। 


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फांसी देने पर कैदी की मौत कैसे होती है? फांसी की सजा पाए कैदी एवं फांसी से जुडी पूरी जानकारी 

  फिर फांसी की रस्सी का ऑर्डर दिया जाता है। पूरे देश में सिर्फ बिहार के बक्सर जेल में ही फांसी की रस्सी बनाई जाती है जो बिल्कुल खास होती है। बक्सर जेल से रस्सी उस जेल में लाई जाती है जहां कैदी को फांसी देना मुकर्रर हुआ है। यहां कैदी के वजन, कद-काठी और गले की माप के मुताबिक सैंड बैग तैयार किया जाता है और उसे बार-बार रस्सी पर झुलाकर ट्रायल लिया जाता है। पता हो कि आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी देने से पहले ट्रायल के दौरान ही रस्सी दो बार टूट गई थी। 


फांसी देने से पहले क्या-क्या होता है?

 फांसी की सजा पाए कैदी को सामान्य बैरक से हटाकर फांसी कोठी या डेथ सेल में ट्रांसफर कर दिया जाता है। उसे उसे चौबीस घंटे में आंधे घंटे के लिए बाहर निकलने की अनुमति होती है। नियम है कि कैदी अपनी वसीयत लिखाना चाहे तो अदालत से मजिस्ट्रेट को जेल बुलाया जाता है और उनके सामने ही कैदी अपनी वसीयत लिखाता है। फांसी से पहले कैदी की इच्छा पर उसके रिश्तेदार से भी मिलवाया जाता है। यह आपने फिल्मों में भी देखा होगा और शेरो-शायरी में सुना भी होगा। अब एक बात जान लें कि जिस दिन कैदी को फांसी दी जाती है, उस दिन यह प्रक्रिया पूरी नहीं होने तक जेल का सारा काम-काज ठप रहता है। यही वजह है कि फांसी सूर्योदय से पहले ही दी जाती है ताकि जेल का काम प्रभावित नहीं हो। इसके लिए सुबह चार बजे ही कैदी को जगा दिया जाता है। अक्सर जिसे फांसी होनी होती है, वो खौफ में रातभर जगा ही रहता है। सुबह चार बजे कैदी को नहाने के लिए कहा जाता है और उसे पहनने को नए कपड़े दिए जाते हैं। उस सुबह कैदी को सिर्फ चाय ऑफर की जाती है। 


सुबह में ही क्यों दी जाती है फांसी?

निर्धारित समय पर कैदी को उसका चेहरा ढंककर सेल से निकाला जाता है। कई बार कैदी डर के मारे कदम नहीं बढ़ा पाता है, तब उसे पुलिस वाले टांगकर फांसी वाली जगह पर लाते हैं। जहां फांसी लगाई जाती है, वहां एक डॉक्टर, एसडीएम, जेलर और डिप्टी सुपिंटेंडेंट होते हैं। साथ ही, 10 सिपाही और 2 हेड कॉन्सटेबल भी वहां मौजूद होते हैं। वहां जल्लाद कैदी के मुंह पर काला कपड़ा पहनाकर, उसके हाथ-पैर बांधता है। फिर तय वक्त पर जेलर रुमाल नीचे गिराकर लीवर खींचने का इशारा करता है। इशारा मिलते ही जल्लाद लीवर खींच देता है। कैदी के पांव के नीचे से दोनों पट्टे खिसक जाते हैं और गर्दन में बंधी रस्सी से कैदी नीचे झूल जाता है। उसके बाद जो होता है, लोग उसे ही अमानवीय और क्रूरता की संज्ञा दे रहे हैं। 



फांसी से मौत कैसे होती है?

 गर्दन में सात सर्वाइकल वर्टेब्रा (Cervical Vertebrae) पाए जाते हैं। इसकी सबसे ऊपर का वर्टेब्रा होता है, एटलस जो गर्दन को सिर से जोड़ता है। जब लीवर खींचने के बाद कैदी का शरीर रस्सी पर टंग जाता है और वह तड़प उठता है। उसे जोर का दर्द होता है। पहले तो पूरे शरीर के वजन के साथ रस्सी के अचानक नीचे आ जाने से गर्दन की हड्डियों पर जोर पड़ता है और फिर जब कैदी की छटपटाहट से गर्दन एलटस वर्टेब्रा टूट जाता है। लेकिन किसी की गर्दन और सिर को जोड़ने वाली हड्डी एटलस कितने देर में टूटेगी, यह कैदी के वजन के साथ-साथ उसकी गर्दन मांसपेशियों, हड्डियों और उनके जोड़ की मजबूती आदि पर निर्भर करता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसमें कई बार एक से डेढ़ मिनट तक का वक्त लग जाता है। इस दौरान कैदी को असह्य पीड़ा होती है। फिर जब एटलस टूट जाता है तब कैदी के ब्रेन को ऑक्सिजन की सप्लाई बंद हो जाती है और वो बेहोश हो जाता है। एक्सपर्ट बताते हैं, 'फंदे पर झूलने के बाद कैदी के वर्टिबल कॉलम की ऊपर की हड्डियां टूट जाती हैं। स्पाइनल कॉर्ड (मेरुदंड) टूट जाने से शरीर का ब्रेन (दिमाग) से कनेक्शन कट जाता है। ब्रेन को ब्लड सप्लाई नहीं होने से कैदी तुरंत बेहोश हो जाता है। उसके शरीर के एक-एक अंग को शिथिल पड़ने में कुछ मिनट लग जाते हैं, लेकिन फांसी पर झूलते ही कैदी ब्रेन डेड हो जाता है।' 



बेहोशी के बाद मौत और फिर?

यह सुनिश्चित करने की भरपूर कोशिश होती है फांसी लगने के बाद जल्द से जल्द कैदी की मौत हो जाए और उसे कम से कम पीड़ा से गुजरना पड़े। इसलिए गर्दन में रस्सी की गांठ लगाने का भी विशेष तरीका अपनाया जाता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, तुरंत मौत के लिए बेहतरीन विकल्प होता है कि गांठ ठुड्डी के नीचे लगाई जाए ताकि कैदी की लीवर खींचे जाने के बाद कैदी का सिर पीछे खिंच जाए और एटलस पर ज्यादा जोर पड़ने के कारण वह तुरंत टूट जाए। लेकिन इस पोजिशन में रस्सी के इधर-उधर खिसकने की भी आशंका होती है। इसलिए बाएं कान के नीचे गांठ लगाई जाती है। तब तब लीवर खिंचने के बाद कैदी की गर्दन दाईं तरफ झुक जाती है और शरीर बाईं तरफ थोड़ा खिसक जाता है। इस अवस्था में छटपटाने से भी एटलस के टूटने से कैदी पहले बेहोश होता है, फिर उसकी मौत हो जाती है। प्रक्रिया के मुताबिक, फांसी के आधे घंटे बाद डॉक्टर कैदी की नब्ज देखकर उसके मर जाने की पुष्टि करता है। उसके बाद लाश को फांसी के फंदे से उतार लिया जाता है। 


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दुनिया में मौत की सजा देने के अलग-अलग तरीके


1. जहरीला इंजेक्शन 

अमेरिका, फिलीपींस, चीन, थाईलैंड, ताइवान, मालदीव और वियतनाम जैसे देशों में जहरीले इंजेक्शन से मृत्युदंड दिया जाता है।

अमेरिका के 31 राज्यों में जहरीले इंजेक्शन से मृत्युदंड दिया जाता है। इसमें कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, नेवादा, टेक्सास और ओहायो जैसे राज्य शामिल हैं।

इसमें भी 1977 में ओक्लाहोमा अमेरिका में पहला ऐसा राज्य बना जिसने जहरीले इंजेक्शन से मृत्युदंड देने का तरीका अपनाया।

सजा देने वाले व्यक्ति को एक स्ट्रेचर पर लिटाया जाता है। फिर एक टीम उस व्यक्ति के त्वचा पर कई हर्ट मॉनिटर लगाती है।

दो जहरीले इंजेक्शन रखे जाते हैं। इसमें एक बैकअप के लिए होता है। फिर अपराधी के बांह में यह इंजेक्शन लगाया जाता है।

टॉक्सिक इंजेक्शन के शरीर में जाते ही नर्वस सिस्टम काम करना बंद कर देता है। इसी वजह से दिल और फेफड़े जैसी मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं, जिससे व्यक्ति की मौत हो जाती है।



2. करेंट से मृत्युदंड


मृत्युदंड देने के तरीके को मानवीय बनाने के लिए इस तरीके का ईजाद किया गया था। 1888 में अमेरिका न्यूयॉर्क में पहली बार इसके लिए इलेक्ट्रिक कुर्सी बनाई गई।

अमेरिका में करेंट लगाकर मृत्युदंड को सेकेंडरी तरीके के रूप में ही इस्तेमाल किया जाता है।

इसमें मृत्युदंड दिए जाने वाले व्यक्ति के आंखों पर पट्टी बांधकर एक कुर्सी पर बैठाकर उसे सामने से बांध दिया जाता है। हाथ और पैर भी बंधे होते हैं। फिर इलेक्ट्रोड लगा एक मेटल कैप सिर में पहनाया जाता है। एक और इलेक्ट्रोड पैरों में लगाया गया होता है।

जेल वार्डन के निर्देश पर ऑब्जर्वेशन रूम से पावर सप्लाई को ऑन कर दिया जाता है। 30 सेकेंड तक 500 से 2000 वोल्ट की पावर सप्लाई दी जाती है। कुछ देर शरीर को ठंडा होने के लिए छोड़ने के बाद डॉक्टर कैदी की जांच करते हैं। अगर धड़कनें चल रही हों तो दोबारा पावर ऑन किया जाता है।

इंसानी नर्वस सिस्टम बेहद हल्की इलेक्ट्रिक पल्स से काम करता है। जब किसी व्यक्ति की शरीर से तेज वोल्टेज को गुजारा जाता है तो इसे इलेक्ट्रिक पल्स से काम करने वाले सभी अंग जैसे ब्रेन, दिल की धड़कने और फेफड़े जैसे अंग काम करना बंद कर देते हैं। इससे व्यक्ति की मौत हो जाती है। 


3. जहरीला गैस चैंबर


अमेरिका के 7 राज्यों में जहरीले इंजेक्शन के बाद यह दूसरे तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 1924 में नेवादा राज्य में पहली बार इसका इस्तेमाल शुरू हुआ।

इसमें सजा दिए जाने वाले व्यक्ति को एक एयर टाइट चैंबर में एक कुर्सी पर बांध दिया जाता है। कुर्सी के नीचे एक सल्फ्यूरिक एसिड की बाल्टी रखी होती है।

जेल वॉर्डेन के इशारे पर पूरी तरह सील चैंबर में सल्फ्यूरिक एसिड की बाल्टी में क्रिस्टल सोडियम सायनाइड छोड़ा जाता है। इन दोनों के रिएक्शन से हाइड्रोजन सायनाइड गैस निकलती है।

एक लंबा स्टेथोस्कोप कैदी के साथ अटैच होता है। इससे चैंबर के बाहर से डॉक्टर जांच कर मौत हुई है या नहीं इसकी जांच करता है।

टॉक्सिक गैस जब शरीर में जाती हैं तो शरीर को ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाता है। इससे शरीर की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं। इसी वजह से व्यक्ति की मौत हाे जाती है।


4. गोली मारकर मौत की सजा


अमेरिका, ब्राजील, इंडोनेशिया और नॉर्थ कोरिया जैसे देशों में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है।

अमेरिका में इस तरीके से तभी मृत्यदंड देने की अनुमति है, जब राज्य जहरीले इंजेक्शन से मृत्युदंड देने में सक्षम नहीं होता है।

इस तरीके में अपराधी को एक कुर्सी पर लेदर के पट्टे से बांध कर बैठा दिया जाता है। कुर्सी के आस-पास बालू की बोरियां रखी होती हैं ताकि वह ब्लड को सोख ले।

डॉक्टर स्टेथोस्कोप से कैदी का हर्ट मार्क कर देता है। 5 शूटर पॉइंट 30 कैलिबर राइफल के साथ 20 फीट की दूरी पर खड़े होते हैं। कई देशों में शूटर्स 3 भी होते हैं।

एक स्लॉट से सभी शूटर्स फायर करते हैं और ज्यादा खून बहने से कैदी की मृत्यु हो जाती है।

गोली लगने से महत्वपूर्ण अंग क्षतिग्रस्त होने और ज्यादा खून बहने से व्यक्ति की मौत हो जाती है। 


5. पथराव से मौत की सजा


सूडान में अडल्ट्री के लिए अब भी पथराव कर मौत की सजा का प्रावधान है।

सूडान के अलावा अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, मलेशिया, माली, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सोमालिया, सऊदी अरब और कतर जैसे देशों में पथराव कर अब भी मौत की सजा सुनाई जाती है।

पथराव से मौत की सजा देने की शुरुआत प्रचीन इजराइल से मानी जाती है।

यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स कमिशन इस तरह से सजा देने को लेकर कई बार चिंता जता चुका है। इसमें भी महिलाओं को इस तरह से सजा देने को लेकर कड़ी आपत्ति रही है।

लगातार पथराव से व्यक्ति के सिर जैसे महत्वपूर्ण अंग चोटिल हो जाते हैं और ज्यादा खून बहने से व्यक्ति की मौत हो जाती है। असहनीय दर्द होने से भी व्यक्ति की मौत हो जाती है।

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